6 मिनट पहले
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कोर्ट ने 26 साल की पूजा नाम की महिला को 33 हफ्ते की प्रेग्नेंसी खत्म करने की परमिशन दे दी है।
दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को एक महिला को 33 हफ्ते की प्रेग्नेंसी खत्म करने की परमिशन दे दी है। सोमवार को सुनवाई के दौरान न्यूरोसर्जन और स्त्री रोग विशेषज्ञ का पक्ष सुना था और फैसला सुरक्षित रख लिया था।
दरअसल कुछ दिक्कतों के चलते बच्चा विकलांग पैदा हो सकता था। प्रेग्नेंसी एडवांस स्टेज में थी, इसलिए दिल्ली के LNJP हॉस्पिटल के मेडिकल बोर्ड ने अबॉर्शन से इनकार कर दिया था। इसके बाद महिला ने हाईकोर्ट में अपील की थी।
कोर्ट 26 साल की पूजा नाम की महिला के मामले में सुनवाई कर रहा था। पूजा की ओर से एडवोकेट अन्वेश मधुकर, प्रांजल शेखर, प्राची निर्वान और यासीन सिद्दीकी ने पक्ष रखा।
पहले पढ़िए डॉक्टर का बयान, जिसके आधार पर फैसला हुआ
न्यूरोसर्जन ने कोर्ट से कहा था, “इस बात की पूरी संभावना है कि बच्चा कुछ विकलांग होगा, लेकिन बच जाएगा। बच्चे के जीवन की गुणवत्ता का अनुमान नहीं लगाया जा सकता है। लेकिन, जन्म के लगभग 10 हफ्ते बाद कुछ परेशानियों से निपटने के लिए सर्जरी की जा सकती है।”
अब पढ़ें नियमों के आधार पर जज ने क्या कहा
- फैसला सुनाते हुए जस्टिस प्रतिभा एम सिंह ने कहा- कोर्ट इस नतीजे पर पहुंचा है कि मां की पसंद ही आखिरी है। इसे ध्यान में रखते हुए कोर्ट गर्भपात की परमिशन देता है। वो चाहे तो LNJP या अपने चुने हुए किसी भी हॉस्पिटल से अबॉर्शन करवा सकती है।
- जस्टिस सिंह ने कहा- भारतीय कानून में यह स्पष्ट किया गया है कि अंततः एक मां की चॉइस पर निर्भर होता है कि वह अपनी गर्भावस्था को जारी रखना चाहती है या नहीं।
- कोर्ट ने कहा, “इस तरह के मामलों में एक महिला गंभीर दुविधा से गुजरना पड़ता है। आधुनिक तकनीक के साथ अबॉर्शन जैसे मामलों में फैसला करना मुश्किल हो जाता है।”
- कोर्ट ने एलएनजेपी अस्पताल की मेडिकल रिपोर्ट पर भी नाराजगी जाहिर की। कोर्ट का कहना था कि ये रिपोर्ट अधुरी है।
- जस्टिस सिंह ने बताया कि याचिकाकर्ता से बातचीत के दौरान पता चला कि वह यह जानती थी कि अगर वह विकलांग बच्चे को जन्म देती तो उसे मानसिक आघात से गुजरना पड़ता।
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SC का कमेंट-अविवाहितों को अबॉर्शन का अधिकार न देना उनकी आजादी छीनना
सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि अविवाहित महिलाओं को गर्भपात के अधिकार से वंचित रखना उनकी व्यक्तिगत आजादी का हनन है। कोर्ट इस कानून में बदलाव कर अनमैरिड महिलाओं को भी अबॉर्शन की अनुमति देने पर विचार करेगा। कोर्ट मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी अधिनियम और संबंधित नियमों की व्याख्या करेगा। पढ़ें पूरी खबर…
SC ने अबॉर्शन कानून में दी मैरिटल रेप को एंट्री

सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय कानून में मैरिटल रेप को एंट्री दे दी है। अभी ये एंट्री केवल अबॉर्शन के लिए ही है। फिर भी ये पहली बार है जब सीमित ही सही, लेकिन मैरिटल रेप को मान्यता मिली है। जबकि सरकार का मानना रहा है कि पति, पत्नी का रेप नहीं करते। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पति के जबरन संबंध से पत्नी के प्रेग्नेंट होने का मामला मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी रूल यानी MTP के रूल 3B (a) के तहत रेप माना जाएगा। पढ़ें पूरी खबर…
उत्तराखंड HC ने 16 साल की रेप पीड़िता को 28 हफ्ते का गर्भ गिराने परमिशन दी
उत्तराखंड हाईकोर्ट ने 16 साल की रेप पीड़िता को 28 सप्ताह 5 दिन के गर्भ को समाप्त करने की अनुमति दी है। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि दुष्कर्म के आधार पर पीड़िता को गर्भपात का अधिकार है। गर्भ में पल रहे भ्रूण के बजाय दुष्कर्म पीड़िता की जिंदगी ज्यादा मायने रखती है। यह फैसला जस्टिस आलोक कुमार वर्मा की सिंगल बेंच ने सुनाया। पढ़ें पूरी खबर…